Friday 11 November 2016

तर्क, आत्मविश्वास, सवाल, प्लैजियरिज़्म और ईमानदारी

इस ब्लॉग पर जो मैं शुरु करना चाहता था उसकी यह पहली कड़ी है।

पिछले छः-सात सालों से, भारत में संभवतम स्वतंत्रता, ईमानदारी और आनंद के साथ जी रहा हूं। सच्चाई, ईमानदारी और मौलिकता का अपना आनंद है। मेरी सारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी मासिक धनराशि 10 से 13-14 हज़ार रु. में मैं यह कर पा रहा हूं। बीच में तरह-तरह के संकट आए, कुछ संकटों और समाधानों के बारे में फ़िलहाल मेरे अलावा किसीको भी नहीं पता। उनका ज़िक़्र भी कहीं न कहीं आएगा। यहां यह बताना है कि सच्चाई, ईमानदारी और मौलिकता अपना ही मज़ा है। स्पष्ट कर दूं कि इसमें किसी व्यक्ति-विशेष, व्यवस्था-विशेष, सिद्धांत-विशेष, विचारधारा-दल-वाद-विशेष का हाथ नहीं है, अपनी तरह से जीने के लिए रास्ते भी ख़ुद ही निकालने पड़ते हैं।

मेरी उम्र 53 से ऊपर हो चुकी है और पिछले 2-3 सालों से कभी-कभार मैं नौकरी के लिए एप्लाई कर देता हूं। हालांकि कोई ख़ास दिक़्क़त नहीं है इसलिए कोई जल्दी भी नहीं है।

कल ही मुझे एक कंपनी/नियोक्ता का जवाब मिला। पार्ट-टाइम और होम-बेस्ड जॉब के लिए एक फ़ॉर्म भरकर वापिस भेजना था। उन्होंने कहा कि कुछ पूछना हो तो पूछ सकते हैं। मैंने निम्नलिखित बातें पूछ लीं-






प्रिय मित्र,

फ़ॉर्म भरकर भेजने से पहले कुछ बातें जानना आवश्यक हैं-

1.    आपको किन विषयों और विधाओं(Themes and genres) में लेख चाहिए ?
2.    क्या इन लेखों के साथ मूल लेखक का नाम जाएगा या इनके साथ आपकी एजेंसी/कंपनी/संस्था का नाम जागा ?
3.    नेफ़्ट(NEFT) से क्या तात्पर्य है ?
4.    ‘आर्टीकिल मस्ट बी डिलीवरिंग विदिन 24 आवर्स आफ़्टर असाइनिंग’(Article must be delivering within 24 hrs after assigning) का स्पष्ट मतलब क्या है-पहली बार जॉइन करने के 24 घंटे में या किसी विषय-विशेष पर आपकी या अन्य किसी (क्लाइंट/कस्टमर/मेंबर आदि) की मांग के 24 घंटे के अंदर ?
5.    यू आई डी नं. क्या है ?
6.    मुझे अपना ब्लड-ग्रुप नहीं पता! कभी ज़रुरत ही नहीं पड़ी।
7.    प्लेजियरिज़्म चैकर कौन मुहैया कराएगा ? आप कराएंगे या ख़ुद ही इसका प्रबंध करना होगा ? यह कहां से मिलेगा ?
8.    कीवर्ड डेंसिटी 1-3 प्रतिशत से क्या तात्पर्य है ?
9.    ‘इफ़ कंपनी फ़ाउंड स्पिन ऑर रीराइट्स् कंटेंट दैन यू/योर पेमेंट विल बी ब्लॉक्ड् बाइ कंपनी’ से क्या तात्पर्य है(If company found spin or rewrites Content then you/your payment will be blocked by company.) ? क्या मात्रा या व्याकरण की मामूली ग़लतियां जो आमतौर पर बड़ा काम करते हुए एकाध हो ही जातीं हैं, ठीक करने को रीराइट करना माना जाएगा ? मेरी समझ में रीराइट करना ठीक नहीं है, आर्टीकल लौटा देना बेहतर है वरना मूल विचार, मूल लेखक को कुछ नहीं मिलेगा और रीराइट करनेवाला मुफ़्त में, ज़रा-सा रीराइट करके, पूरा लाभ उठाएगा। मेरी समझ में यह भी स्पिन/प्लैजियरिज़्म ही है।
कृपया स्पष्ट करें-

शुभकामनाओं सहित,

-संजय ग्रोवर
11-11-2016





-संजय ग्रोवर
11-11-2016

Friday 7 October 2016

खामख़्वाह सीधा रास्ता देखा......

पैरोडी



तेरी आंखों में हमने क्या देखा
डर गए, ऐसा माफ़िया देखा


हमने इतिहास जाके क्या देखा
काम कम, नाम ही ज़्यादा देखा


अपनी तहज़ीब तो थी पिछली गली
खामख़्वाह सीधा रास्ता देखा


अपने पैसे लगे चुराए से
ख़ुदपे आयकर को जब छपा देखा


हाय! अंदाज़ तेरे बिकने का
तू ही दूसरों को डांटता देखा


भूले गिरगिट के रंग बदलने को
पंद्रह मिनटों में क्या से क्या देखा 


फिर न आया ख़्याल तोतों का
जबसे स्कूल/मंदिर का रास्ता देखा


-संजय ग्रोवर
(क्षमा महान है/शायर और भी महान है)
07-10-2016

Wednesday 5 October 2016

फ़िल्मी

लघुकथा



बहुत-से लोग चाहते हैं कि उनपर कोई फ़िल्म बनाए।

हालांकि उनमें से कईयों की ज़िंदगी पहले से ही फ़िल्म जैसी होती है।

उनके द्वारा छोड़ दिए गए सारे अधूरे कामों को फ़िल्मों में पूरा कर दिया जाता है।

किसीने कहा भी है कि ज़िंदगी में किसी समस्या से निपटने से आसान है फ़िल्म में उसका ख़ात्मा कर देना।

किसीने क्या, मैंने ही कहा है।



-संजय ग्रोवर

05-10-2016


Tuesday 22 March 2016

कि ये जो लोग हैं, ये हैं ही ऐसे...

ग़ज़ल

हुआ क्या है, हुआ कुछ भी नहीं है
नया क्या है, नया कुछ भी नहीं है

अदाकारी ही उनकी ज़िंदगी है
जिया क्या है, जिया कुछ भी नहीं है

रवायत चढ़के बैठी है मग़ज़ में
पिया क्या है, पिया कुछ भी नहीं है

लिया है जन्म जबसे, ले रहे हैं
दिया क्या है, दिया कुछ भी नहीं है

कि ये जो लोग हैं, ये हैं ही ऐसे
किया क्या है, किया कुछ भी नहीं है

-संजय ग्रोवर
22-03-2016


Saturday 30 January 2016

पार्टनरशिप

लघुव्यंग्यकथा

सड़क-किनारे एक दबंग-सा दिखता आदमी एक कमज़ोर-से लगते आदमी को सरे-आम पीट रहा था। पिटता हुआ आदमी ‘बचाओ-बचाओ’ चिल्ला रहा था। लोग बेपरवाह अपने रुटीन के काम करते गुज़र रहे थे। 

‘हाय! हमें बचाने कोई नहीं आता, कोई हमारा साथ नहीं देता.....’, वह कराह रहा था...

एक आदमी रुका, ‘क्यों भई, बात क्या है ? क्यों पीट रहे हो उसे !? क्या बिगाड़ा है उसने तुम्हारा ?’

दबंग अभी कुछ जवाब देता कि पिटनेवाला एकदम उठकर खड़ा हो गया, कड़क कर बोला, ‘किसने तुम्हे बुलाया ? शर्म नहीं आती, फूट डालने की कोशिश कर रहे हो हम दोनों में !’

ज़ाहिर है कि बीच में पड़नेवाला आदमी सकपका गया, ऐसी तो उसने कल्पना तक न की थी।

ख़ुदको छला गया महसूस करते हुए वह भारी मन और भारी क़दमों से घर लौटा।

अब जब कभी वह राह चलते ऐसे दृश्य देखता है, कोई पुकार सुनता है तो उसे कोई रियाज़, रुटीन या रिहर्सल मानते हुए आगे बढ़ जाता है।

-संजय ग्रोवर
30-01-2016

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