Friday 7 October 2016

खामख़्वाह सीधा रास्ता देखा......

पैरोडी



तेरी आंखों में हमने क्या देखा
डर गए, ऐसा माफ़िया देखा


हमने इतिहास जाके क्या देखा
काम कम, नाम ही ज़्यादा देखा


अपनी तहज़ीब तो थी पिछली गली
खामख़्वाह सीधा रास्ता देखा


अपने पैसे लगे चुराए से
ख़ुदपे आयकर को जब छपा देखा


हाय! अंदाज़ तेरे बिकने का
तू ही दूसरों को डांटता देखा


भूले गिरगिट के रंग बदलने को
पंद्रह मिनटों में क्या से क्या देखा 


फिर न आया ख़्याल तोतों का
जबसे स्कूल/मंदिर का रास्ता देखा


-संजय ग्रोवर
(क्षमा महान है/शायर और भी महान है)
07-10-2016

Wednesday 5 October 2016

फ़िल्मी

लघुकथा



बहुत-से लोग चाहते हैं कि उनपर कोई फ़िल्म बनाए।

हालांकि उनमें से कईयों की ज़िंदगी पहले से ही फ़िल्म जैसी होती है।

उनके द्वारा छोड़ दिए गए सारे अधूरे कामों को फ़िल्मों में पूरा कर दिया जाता है।

किसीने कहा भी है कि ज़िंदगी में किसी समस्या से निपटने से आसान है फ़िल्म में उसका ख़ात्मा कर देना।

किसीने क्या, मैंने ही कहा है।



-संजय ग्रोवर

05-10-2016


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