Thursday 26 January 2017

अमेज़न, हिंदी, क़िताब-ब्लॉक, विवाद और मैं

पिछला भाग

पहली क़िताब मैंने पोथी डॉट कॉम पर छापी। छापी क्या वह तो ट्राई करते-करते में ही छप गई। सोचा कि यार देखें तो सही, क्या पता छप ही जाए। काफ़ी मग़जमारी करनी पड़ी पर अंततः क़िताब तो छप गई। काफ़ी कुछ सीखने को मिला पर उससे कहीं ज़्यादा अभी सीखने को बचा हुआ था। ऐसी ही कई चीज़ों से ग़ुज़रते हुए यह और अच्छी तरह से समझ में आया कि ‘परफ़ैक्ट मैन’ या ‘संपूर्ण ज्ञान’ जैसी धारणाएं कितनी हास्यास्पद है।
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उसके बाद क़ाफ़ी टाइम निकल गया। बीच-बीच में अमेज़ॉन, गूगल और अन्य ऑनलाइन पब्लिशर्स की साइट्स् पर जा-जाकर समझने की कोशिश करता रहा। अमेज़ॉन पर जाकर एक चीज़ समझ में नहीं आती थी कि वहां हिंदी क़िताबें/ईक़िताबें तो काफ़ी दिखाई देतीं थीं मगर जब मैं क़िताब छापने की प्रकिया में आगे चलता था तो वहां हिंदी में छापने का ऑप्शन कहीं दिखाई नहीं देता था। मैं बार-बार मन मार लौट आता।

फिर एक दिन गूगल प्ले पर लगा कि यहां हिंदी में छापी जा सकती है, मैंने सोचा कि क्या अमेज़ान के लिए बैठे रहेंगे, गूगल का नेटवर्क अच्छा-ख़ासा है और जैसी कि मेरी आदत है कि नयी या अलग चीज़ शुरु करने में ज़्यादा घबराता नहीं हूं, शुरु कर ही देता हूं सो गूगल प्ले को समझने में लग गया। कई दिन लगे, बार-बार कोई न कोई समस्या आ जाती थी और निराशा हाथ लगती थी मगर कुछ दिन बाद फिर शुरु हो जाता था। और अंततः वहां भी, थोड़ी कमी-बेशी के साथ ही सही, क़िताब छप ही गई। बाद में उसे सुधारता रहा, अभी तक भी ठीक करता रहता हूं। गूगल प्ले पर मुझे एक बात यह भी अच्छी लगी कि अगर आपकी तरफ़ से कोई तक़नीक़ी कमी न हो तो क़िताब तुरंत ही पब्लिश/लाइव हो जाती है जबकि अमेज़ॉन क़िताब अप्रूव करने के लिए 24 से 72 घंटे लेता है। गूगल पर एक और अच्छी बात यह है आप क़िताब की क़ीमत कम से कम कितनी भी रख सकते हैं जबकि अमेज़ॉन पर यह तीन(2.99) डॉलर से कम नहीं हो पा रही थी। बाद में पता चला कि पुस्तक-प्रमोशन की कुछ योजनाओं के तहत या दूसरी साइट्स् से प्रतिस्पर्द्धात्मक तुलना के तहत क़ीमत कम भी हो सकती है पर वह सारा काम अमेज़ॉन-प्रबंध ही करता है, यह हमारे हाथ में नहीं है। । बहरहाल गूगल पर दो क़िताबें छाप डाली, और देखा कि बिक भी रहीं हैं तो थोड़ा उत्साह बढ़ा।
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तब सोचा कि अमेज़ॉन पर फिर से ट्राई मारी जाए, आखि़र दूसरे लोग हिंदी में छाप भी रहे हैं और बाक़ायदा पब्लिसिटी भी कर रहे हैं। यह मुझे पता ही था कि अमेज़ॉन बिना अप्रूवल के क़िताब नहीं छापता, 24 से 72 घंटे लेता है, सोचा कि छाप के देखते हैं, अगर कोशिश ग़लत होगी तो अमेज़ान अप्रूव ही नहीं करेगा। पहले ‘ऐसा भी होता है’ नाम का एक पुराना हस्तलिखित बाल जासूसी उपन्यास निकाला। कई दिन, कई घंटे दिमाग़ मारा, आखि़रकार अप्रूव भी हो गया और छप भी गया। फिर सोचा कि कविता-संग्रह कभी नहीं छापा, क्यों न अमेज़ॉन पर ट्राई किया जाए। तक़नीक़ी और दोहराव के कामों में बहुत बोरियत आती है मगर लगा रहा, और देखा कि कविता-संग्रह भी अप्रूव होकर छप गया।
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अमेज़ॉन का पुस्तक-प्रकाशन के क्षेत्र में जैसा नाम है, मैं चाहता तो मैं भी उसका फ़ायदा उठाते हुए ख़ुदको महान, सफ़ल, भगवान ;-) की तरह पेश कर सकता था (जैसाकि अकसर दूसरों को करते देखा है)मगर मैंने बहुत सादा ढंग से ही कविता संग्रह को पेश किया। बताया कि यहां से कोई भी छाप सकता है, कोई बड़ी बात नहीं है, हालांकि मैं जानता था कि कई लोग जो ऐसे ही कुछ ‘राज़’/‘रहस्य’ वग़ैरह छुपाकर महान और भगवान टाइप बने रहते हैं, मेरे ऐसे प्रयत्न पर बुरा भी मान सकते हैं। लेकिन मैं भी क्या करुं, मेरी भी तो ज़िंदगी, सच्चाई, समझदारी और ईमानदारी को लेकर अपनी एक सोच है ?

फिर एक दिन अचानक अमेज़ॉन से मेल आया कि आपकी क़िताब हमने रोक दी है क्योंकि हमारे यहां हिंदी समर्थित भाषा नहीं है।

कुछ और दिन बाद उन्होंने क़िताब ब्लॉक करदी। उसके बाद उनका और मेरा बज़रिए ईमेल जो भी पत्र-व्यवहार हुआ, ज्यों का त्यों आपके सामने रख रहा हूं-

(जारी)

-संजय ग्रोवर
26-01-2017

(उक्त जानकारी की पूर्ण-सत्यता का लेखक का कोई दावा नहीं हैं, दुनिया/चीज़ें रोज़ाना तेज़ी से बदल रहीं हैं)

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